आजकल दलित राजनीती चरमोत्कर्ष पर है यह सिर्फ दलितों की चिंता है उनकी आड़ में अपनी रोटियां सेंकनी है क्या सचमुच दलित होना आजकल फैशन बन गया है क्या वाकई दलित दलित ही रहना चाहते हैं या पढ़ लिख कर दलितत्व से मुक्त होना चाहते हैं. अगर आरक्षण से फायदा होना होता तो आज़ादी के बाद सारे दलित पढ़ लिख कर उच्च पद आ गए होते और अपने आप को दलितत्व के अभिशाप से मुक्त हो गए होते।
आज से १०० साल पहले बाबासाहेब आंबेडकर ने बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से संयुक्त राज्य अमेरिका मे उच्च अध्धयन के लिये एक पच्चीस रुपये प्रति माह का वजीफा़ प्राप्त किया और उच्च शिक्षा प्राप्त कर सम्मानित जीवन जिया और अपने आप को दलित होने के अभिसहप से मुक्त कर लिया परन्तु आज उन्ही के नाम से लोग राजनीती कर हैं. परन्तु उनकी तरह कोई आगे नहीं बढ़ना चाहता दरअसल इस देश के कुछ लोग नहीं चाहते की छुहाछूत खत्म हो दलितों के नाम पर वोटों की राजनीती हो रही है अगर सभी पढ़ लिख कर आगे बढ़ गए तो वोट कौन देगा अतः आज आवश्कयता है कि आरक्षण पैर पुनर्विचार हो.
आज से १०० साल पहले बाबासाहेब आंबेडकर ने बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से संयुक्त राज्य अमेरिका मे उच्च अध्धयन के लिये एक पच्चीस रुपये प्रति माह का वजीफा़ प्राप्त किया और उच्च शिक्षा प्राप्त कर सम्मानित जीवन जिया और अपने आप को दलित होने के अभिसहप से मुक्त कर लिया परन्तु आज उन्ही के नाम से लोग राजनीती कर हैं. परन्तु उनकी तरह कोई आगे नहीं बढ़ना चाहता दरअसल इस देश के कुछ लोग नहीं चाहते की छुहाछूत खत्म हो दलितों के नाम पर वोटों की राजनीती हो रही है अगर सभी पढ़ लिख कर आगे बढ़ गए तो वोट कौन देगा अतः आज आवश्कयता है कि आरक्षण पैर पुनर्विचार हो.
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